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मिथिला: समृद्ध संस्कृति र इतिहासको भूमि

मिथिला, यसको जीवित संस्कृति, इतिहास, र कला लागि प्रसिद्ध एक प्राचीन क्षेत्र हो, जुन उत्तरी भारत र दक्षिणी नेपालका भागहरूमा फैलिएको छ। यो क्षेत्र विशेषगरी मैथिली भाषासँगको सम्बन्ध र मिथिला चित्रकलाको पुरानो परंपरासँग परिचित छ, जसलाई मधुबनी कला पनि भनिन्छ। ऐतिहासिक महत्त्व मिथिलाको ऐतिहासिक जरा प्राचीन विदेह राज्यमा पर्छ, जुन प्रसिद्ध राजा जनक द्वारा शासित थियो, जो रामायणका सीताका पिता हुन्। यो क्षेत्र सदियोंदेखि सांस्कृतिक केन्द्रको रूपमा रहेको छ, वेदिक परंपरासँग जनजीवन, साहित्य, र चाडपर्वहरूको मिश्रण गर्दै। मैथिली भाषा मैथिली, नेपाल र भारतमा मान्यता प्राप्त भाषामध्ये एक हो, जसले मिथिलाको सांस्कृतिक पहिचानमा प्रमुख भूमिका खेल्दछ। यस भाषामा समृद्ध साहित्यिक सम्पत्ति छ, र विद्यापतिको जस्ता कविहरूले यसको धरोहरमा महत्त्वपूर्ण योगदान दिएका छन्। मिथिला कला र संस्कृति मिथिला विशेषगरी यसको परंपरागत लोक कला, विशेषगरी विश्वप्रसिद्ध मधुबनी चित्रकलाको लागि प्रसिद्ध छ, जसमा जटिल डिजाइन र प्रतीकात्मकता हुन्छ। यी चित्रकलाहरू प्रायः धार्मिक थिम, प्रकृति, र सांस्कृतिक परंपराहरूलाई चित्रित गर्छन्। महिला...

छठ पूजा: आस्था और श्रद्धा का महापर्व

छठ पूजा भारत के पूर्वी राज्यों, खासकर बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह त्योहार सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के लिए प्रसिद्ध है, जो परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता के लिए किया जाता है। छठ पूजा मुख्य रूप से चार दिनों तक चलती है और इसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, और उषा अर्घ्य जैसे विशेष अनुष्ठान होते हैं।
छठ पर्व का महत्व
छठ पूजा सूर्य देव की आराधना का पर्व है, जिन्हें प्रकृति के पालनकर्ता और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। सूर्य भगवान को जल अर्पित कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। साथ ही छठी मैया से परिवार की खुशहाली और बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का भी संदेश देता है।
छठ पूजा के चार मुख्य दिन
1. पहला दिन (नहाय-खाय): इस दिन व्रतधारी महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करती हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन खासकर लौकी और चावल का सेवन किया जाता है।
2. दूसरा दिन (खरना): व्रतधारी महिलाएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जल व्रत शुरू होता है।
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): इस दिन व्रतधारी महिलाएं सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस समय व्रती विशेष गीत गाते हुए सूर्य देवता की पूजा करती हैं।
4. चौथा दिन (उषा अर्घ्य): छठ पर्व के अंतिम दिन, उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती सूर्योदय से पहले नदी या तालाब के किनारे जाकर पूजा करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
छठ पूजा के प्रसाद
छठ पूजा का प्रसाद खास होता है और इसे पूरी शुद्धता से बनाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से ठेकुआ, चावल के लड्डू, और फलों का उपयोग होता है। ठेकुआ, जो गुड़ और आटे से बनाया जाता है, छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद माना जाता है।
पर्यावरण और स्वच्छता का संदेश
छठ पूजा के दौरान नदी या तालाब के किनारे पूजा की जाती है, जिससे स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस पर्व के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि हमें अपनी नदियों और जल स्रोतों को साफ रखना चाहिए, क्योंकि यह जीवन के लिए आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह जीवन के प्रति कृतज्ञता, पर्यावरण के प्रति प्रेम और परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि आस्था और विश्वास से जीवन में हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। छठ पूजा की महिमा और महत्व के कारण यह पर्व लाखों लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखता है।
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